लखनऊ। नामांकन कराकर वापस लेना यूपी वालों के लिए मूंछ का सवाल बन गया। यही कारण है कि साल-दर-साल ये संख्या घटती गई। साल 2009 में उत्तर प्रदेश के 130 कैंडिडेट ने नामांकन वापस लिए। 2014 में ये संख्या घटकर 122 रह गई। साल 2019 में तो ये संख्या महज 35 ही बची। वर्तमान लोकसभा चुनाव में अभी तक लगभग 20 प्रत्याशियों ने नाम वापस लिए हैं। वहीं ठीक से नामांकन फॉर्म न भरने के मामले में यूपी अन्य राज्यों से बहुत आगे है। पिछले चुनाव में उत्तर प्रदेश से 766 दावेदारों के नामांकन खारिज हो गए थे, जो देश में सर्वाधिक रहे।
घटती जा रही उम्मीदवारो की संख्या
नामांकन कराने के साथ चुनाव लड़ना अब हर किसी के बस की बात नहीं है। पहले चुनाव में नामांकन फॉर्म भरने वालों की संख्या अच्छी खासी रहती थी। नामांकन कराने की रणनीति विपक्षी पर दबाव बनाने के अतिरिक्त बागी प्रत्याशियों के लिए थी। डमी नाम वाले प्रत्याशी भी खूब नामांकन करते थे। लेकिन चुनाव-दर-चुनाव नामांकन कराने के बाद वापस लेकर बैठ जाने वाले नेताओं की संख्या अब UP में कम होती जा रही है। पिछले 15 साल में इसमें 85 प्रतिशत तक की कमी आई है। चुनाव विशेषज्ञ इसकी कई वजह बताते हैं। एक तो नामांकन राशि 25,000 रुपये हो गई है जो जब्त हो जाती है। डमी कैंडिडेट का असर मतदान में बहुत कम दिखता है। निर्दलीय उम्मीदवार को लेकर जनता का रुझान बहुत कम हो गया है। साथ ही चुनाव में खड़े होकर किसी के पक्ष में बैठ जाने या चुपचाप नामांकन वापस लेने से अच्छा संदेश नहीं जाता है। आगे के चुनाव में ये छवि पीछा नहीं छोड़ती। इसे सम्मान से जोड़कर देखा जाने लगा है। यही वजह है कि फार्म भरने के बाद बैठने वाले नेता घटते जा रहे हैं।
गवाही देते आंकड़े
पिछले लोकसभा चुनाव में 35 उम्मीदवार ने नामांकन वापस लिया था। इनमें 29 पुरुष और 6 महिलाएं थीं। वहीं साल 2014 के चुनाव में 122 नामांकन वापस लिए गए थे। इनमें से 21 महिलाएं और 101 पुरुष थे। 6वर्ष 2009 के चुनाव में 130 नॉमिनेशन पत्र वापस लिए गए। इनमें से 109 पुरुष और 21 महिलाएं थीं।
अधूरा नामांकन पत्र भरने में आगे : नामांकन पत्र अधूरा और गलत भरने के मामले में UP के नेता बहुत आगे हैं। पिछले चुनाव में जहां इस वजह से 766 उम्मीदवार के नामांकन पत्र खारिज हो गए थे। वहीं 2014 में ये संख्या 466 थी। वर्ष 2009 में ये संख्या 401 थी। वर्तमान लोकसभा चुनाव में अभी तक 537 नामांकन पत्र खारिज हो चुके हैं।