लखनऊ: महाकुंभ में 29 जनवरी को हुई भगदड़ को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने सरकार को 24 फरवरी तक का समय दिया है. कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर भगदड़ की जांच की न्यायिक निगरानी और घटना के बाद लापता लोगों का सही ब्योरा देने […]
लखनऊ: महाकुंभ में 29 जनवरी को हुई भगदड़ को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने सरकार को 24 फरवरी तक का समय दिया है. कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर भगदड़ की जांच की न्यायिक निगरानी और घटना के बाद लापता लोगों का सही ब्योरा देने की मांग की गई है. कोर्ट ने बुधवार को याचिका पर सुनवाई की.
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने कहा- अब तक आयोग के काम के दायरे में भगदड़ की अन्य प्रासंगिक जानकारी की जांच शामिल नहीं है. राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा- आयोग भगदड़ के सभी पहलुओं की जांच करने में पूरी तरह सक्षम है. इस पर डिवीजन बेंच ने कहा- जब आयोग नियुक्त किया गया था, तो उसके जांच के दायरे में हताहतों और लापता लोगों की संख्या का पता लगाने के लिए कोई बिंदु नहीं थे। इसलिए अब इन बिंदुओं को आयोग की जांच में शामिल किया जा सकता है.
दरअसल, यह जनहित याचिका हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव सुरेश चंद्र पांडे ने दायर की है. याचिका में महाकुंभ में भगदड़ के दौरान लापता हुए लोगों का ब्योरा जुटाने के लिए न्यायिक निगरानी समिति के गठन की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील सौरभ पांडे ने कहा कि कई मीडिया पोर्टलों ने राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर बताई गई मौतों की संख्या (30) पर सवाल उठाए हैं.
अधिवक्ता सौरभ पांडेय ने अलग-अलग सामाचार पत्रों और पीयूसीएल की एक प्रेस रिलीज का हवाला देते हुए कहा कि मृतकों के परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र लेने के लिए इधर-उधर भागना पड़ा. बिना पोस्टमार्टम के 15 हजार रुपए देकर यह आश्वासन दिया गया। उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र दिया जाना चाहिए।’ इस दौरान एडवोकेट ने कहा कि उनके पास एम्बुलेंस चलाने वाले लोगों का वीडियो है, जिसमें वे बता रहे हैं कि उन्होंने कितने लोगों को अस्पताल ले गए थे।