लखनऊ। ” उत्तर प्रदेश नगर स्थानीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन) अध्यादेश, 2023” में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिससे सभी वर्गों को उसकी आबादी के मुताबिक हिस्सेदारी प्राप्त होगी। राज्य सरकार के इस अध्यादेश में आरक्षण के लिए निश्चित की गई प्रक्रिया से अब आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व न मिलने की शिकायतें दूर हो जाएंगी।
क्या है आरक्षण चक्रानुक्रम की नई व्यवस्था?
अध्यादेश में आरक्षण चक्रानुक्रम की नई व्यवस्था के अनुसार आरक्षण के चक्र को तब तक पूरा नहीं माना जाएगा, जब तक कि सभी वर्गों को आरक्षण नहीं मिल जाता। ऐसे में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के आरक्षण का चक्र पूरा होने तक चक्रानुक्रम व्यवस्था को शून्य नहीं माना जाएगा।
नई व्यवस्था में सभी को मिलेगा प्रतिनिधित्व
अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि आरक्षण की नई व्यवस्था में सभी को प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा लेकिन यह चक्र पूरा होने में वक्त लगेगा। इसे पूरा करने में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना बाधा नही बन पाएगी। अगर इसे ऐसे समझा जाए कि प्रदेश में 17 नगर निगम हैं। एक बार में चार ही पद ओबीसी के लिए रिज़र्व हो सकते हैं। ऐसे में ओबीसी के आरक्षण का चक्र पूरा होने में लगभग चार चुनाव लगेंगे। इसी प्रकार नगर पंचायतों में आरक्षण निर्धारित करने के लिए जिले को इकाई माना गया है। उदाहरण के लिए किसी जिले में दस नगर पंचायतें हैं तो वहां एक बार में तीन ही नगर पंचायत ओबीसी के लिए रिज़र्व होगी। ऐसे में कम से कम तीन बार चुनाव होने पर ही सभी को प्रतिनिधित्व मिल पाएगा। ऐसे में अगर जनगणना होती है तो आरक्षण के चक्र को तभी पूरा माना जाएगा, जब तक कि सभी को प्रतिनिधित्व नहीं मिल जाता।
नई व्यवस्था में ये हुए बदलाव
नगर निगमों को प्रदेश स्तर पर एक इकाई मानकर आरक्षण निर्धारित किए जाएंगे।
नगर पालिका परिषदों को मंडल लेवल पर एक इकाई मानकर रिजर्वेशन तय किए जाएंगे।
नगर पंचायतों को जिला स्तर पर एक इकाई मानकर आरक्षण निर्धारित होंगे।