लखनऊ। 20 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग हुई थी। अब उपचुनाव के रिजल्ट का इतंजार किया जा रहा है। इस बीच कांग्रेस ने इस चुनाव से दूरी बनाकर बीजेपी पर हमला बोला हैं। गठबंधन की बात करने वाली कांग्रेस उपचुनाव में सपा के मंच पर नहीं दिखे। केवल विधानसभा क्षेत्र के प्रभारी ही दिखाई दिए।
उपचुनाव लड़ने से किया था इंकार
राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस ने इस रणनीति से भविष्य की सियासत को साधने की कोशिश की है। भविष्य में सपा ने साथ नहीं दिया तो दूसरे विकल्पों पर भी वे विचार कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने 5 सीटों के लिए मांगी की थी, लेकिन सपा ने केवल 2 सीटे देने की बात कही। सपा पार्टी ने गाजियाबाद और खैर सीट देने की बात कही। ऐसे में कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया। उसकी इस रणनीति के पीछे का कारण अन्य राज्यों के चुनाव भी थे।
गठबंधन के पीछ की हकीकत
उपचुनाव में कांग्रेस के पैर पीछे खींचने का परिणाम यह रहा कि सपा महाराष्ट्र में सीट के लिए अपना पक्ष नहीं रख सकी। यूपी में हुईं जनसभाओं के दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय मंच पर नजर नहीं आए। ये दोनों पहले वायनाड और फिर महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में नजर आए। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। उनके मुताबिक गठबंधन अभी जारी है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
कांग्रेस ने दूसरा विकल्प चुना
सपा की तरफ से इन्हें मंच पर बुलाने की कोई सकारात्मक पहल भी नहीं हुई। ऐसे में कांग्रेस नेताओं ने अपना सम्मान और स्वाभिमान बचाने के लिए दूसरा रास्ता चुना और वे दूसरे राज्यों का रुख कर गए। फूलपुर सीट से कांग्रेस से निकाले गए पूर्व जिलाध्यक्ष सुरेश यादव आखिर तक मैदान में डटे रहे। सियासी जानकारों के मुताबिक अगर सपा उपचुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को रखती तो यह उसके लिए फायदे का सौदा होगा।