लखनऊ। घोसी विधानसभा उपचुनाव ने बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। घोसी सीट हार चुके दारा सिंह ने 2022 में इसी सीट से सपा के टिकट पर विधायक बने थे। हाल ही में उन्होंने अखिलेश यादव का साथ छोड़कर बीजेपी की सदयस्ता ग्रहण की थी। ऐसी चर्चा थी कि अगर दारा सिंह चौहान यह चुनाव जीतते है तो वो मंत्री बन जायेंगे। अपनी जीती हुई सीट दारा सिंह क्यों हार गए इसके पीछे कई कारण थे। आइये जानते हैं इसके पीछे की वजह…
दलबदल करने से नाराज जनता
दारा सिंह चौहान योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें वन एवं पर्यावरण विभाग की जिम्मेदारी दी गयी थी। लेकिन 2022 चुनाव होने से पहले दारा सिंह चौहान बीजेपी को छोड़कर सपा में चले गए थे। सपा सरकार न बन पाने से निराश दारा सिंह हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए। भाजपा में आने के कुछ दिन बाद ही बीजेपी ने घोसी सीट से टिकट दिया। इस चीज को घोसी की जनता नहीं समझ पायी और उन्होंने सुधाकर सिंह के पक्ष में वोट किया।
मुख़्तार अंसारी और मुस्लिम वोटों का असर
मऊ मुख़्तार अंसारी का गृह जिला है। मुस्लिम मतदातों पर मुख्तार अंसारी के परिवार का प्रभाव है। मऊ से मुख़्तार अंसारी पांच बार विधायक रहे चुके हैं। अब उनके बेटे सुभासपा से मौजूदा विधायक है। इस वजह से मुस्लिम वोट पूरी तरह से सपा के खाते में गया। यहां से इस बार किसी दल ने मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतारा था जिस कारण मुस्लिम वोट सुधाकर सिंह को मिले।
अरविंद शर्मा से नाराज लोग
नगर विकास और बिजली विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे अरविंद शर्मा से लोगों की नाराजगी थी जिस वजह से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। आईएएस से नेता बने भूमिहार समाज से आने वाले अरविंद शर्मा का होम टाउन मऊ जिला है। अरविंद शर्मा तो ईमानदार रहे हैं लेकिन प्रशासनिक मशीनरी बहुत भ्र्ष्ट है। सरकार नहर में पानी तक की व्यवस्था नहीं कर पायी जिसका प्रभाव चुनावों में दिखाई पड़ा।
योगी नहीं दिखे एक्टिव
घोसी उपचुनाव में अखिलेश यादव शुरू से ही एक्टिव रहे तो योगी आदित्यनाथ आखिरी समय में चुनाव प्रचार के लिए उतरे जबकि इससे पहले इसके उल्टा होता था। बीजेपी चुनाव प्रचार में लगी रहती थी तो अखिलेश यादव गायब रहते थे। रामपुर और आजमगढ़ हारने के बाद अखिलेश ने घोसी सीट को प्रतिष्ठा से जोड़ लिया था। इसे लेकर ही अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल यादव घोसी में डटे रहे। इसके अलावा ठाकुरों का वोट इस बार स्थानीय फैक्टर के कारण सुधाकर सिंह को मिले।