Thursday, December 26, 2024

इस बार प्रयागराज में कौन सा कुंभ लगने जा रहा, पौष पूर्णिमा से होगी शुरुआत

लखनऊ: भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में कुम्भ मेले का विशेष महत्व है। कुम्भ मेले को भारतीय संस्कृति की विरासत के रूप में देखा जाता है। दरअसल, भारत में चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। जिसमें प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नासिक (महाराष्ट्र) शामिल हैं।

कुंभ कई प्रकार के होते हैं

पौराणिक मान्यता है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। दरअसल, कुंभ कई प्रकार के होते हैं। जिसमें कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ होता है। 2025 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होने जा रहा है. लेकिन ये कौन सा कुंभ है, इसे हम इस आर्टिकल में जानेंगे।

हर 3 साल में कुंभ का आयोजन

कुम्भ मेले को भारतीय संस्कृति की विरासत के रूप में देखा जाता है। दरअसल, कुंभ हर 3 साल में लगता है। भारत में चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। जिसमें प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नासिक (महाराष्ट्र) शामिल हैं। पौराणिक मान्यता है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

अर्ध कुंभ और महाकुंभ

अर्ध कुंभ मेला 6 साल में एक बार हरिद्वार और प्रयागराज के तट पर लगता है। जबकि पूर्ण कुम्भ मेले का आयोजन 12 वर्ष में एक बार होता है, जो कि प्रयागराज में आयोजित होता है। 12 कुंभ मेलों के पूरा होने के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इससे पहले साल 2013 में प्रयाराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था.

पौष पूर्णिमा से शुरू होगा कुंभ

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक कुंभ साल 2025 में पौष पूर्णिमा से शुरू होने जा रहा है. यानी 13 जनवरी 2025 से इसकी शुरुआत होगी. 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्री के साथ इसका समापन होगा. यानी ये कुंभ 45 दिन तक चलने वाला है.

144 साल में लगता है महाकुंभ

हालांकि पूर्ण कुंभ को महाकुंभ भी कहा जाता है। लेकिन सबसे बड़ा महाकुंभ हर 144 साल में होता है, जिसका आयोजन सिर्फ प्रयागराज में होता है। साल 2013 में 144 साल बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था. 12 साल बाद इस बार 2025 में प्रयागराज में पूर्ण कुंभ का आयोजन होने जा रहा है.

हरिद्वार में कब लगता है कुंभ

ऐसा माना जाता है कि जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है।  जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा मेष राशि में मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो अमावस्या के दिन प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है।

नासिक में कब लगता है कुंभ

इसके अलावा जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तो गोदावरी के तट पर नासिक में कुंभ का आयोजन होता है। जबकि बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है।

क्यों है कुंभ का शाही स्नान फेमस

कुंभ मेले के आयोजन की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन के दौरान अमृत तो प्राप्त हुआ, लेकिन इस अमृत कलश के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक संघर्ष चला। ये 12 दिन पृथ्वी पर 12 वर्ष माने जाते हैं। संघर्ष के दौरान 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, जिनमें से चार बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। जिन्हें आज हम प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक के नाम से जानते हैं।

इन नदियों का जल अमृत समान

प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है और इस दौरान नदियों का जल अमृत के समान माना जाता है। यही कारण है कि कुंभ के दौरान नदी में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। प्रयागराज तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, इसलिए इसका विशेष महत्व माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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