लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मानसून सत्र में नजूल भूमि विधेयक पेश किया था। जिसे विधानसभा में पास कर दिया गया लेकिन गुरुवार को यूपी विधान परिषद में हंगामे के बीच ये बिल अटक गया। जिसके बाद इसे प्रवर कमेटी को भेज दिया गया। सबसे आश्चर्य की बात ये हैं कि मुख्यमंत्री योगी को इस बिल पर न केवल विपक्ष दलों के नेता बल्कि भाजपा के नेताओं और समर्थकों का भी विरोध सहना पड़ा।
नजूल संपत्ति अधिनियम 2024
बुधवार को संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में नजूल संपत्ति अधिनियम 2024 पेश किया और कहा कि कई बार जनहित निर्माण कार्य में भूमि का इंतजाम करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिससे सार्वजनिक कार्यों में देरी होती है। उन्होंने कहा कि इसके बाद नजूल संपत्ति का इस्तेमाल सार्वजनिक हित की योजनाओं के लिए किया जाएगा। लेकिन इस बिल का कांग्रेस-सपा ने विरोध किया, जिसमें कई बीजेपी नेता और एनडीए के सहयोगी शामिल थे। ऐसे में सवाल यह है कि नजूल भूमि क्या है और नजूल भूमि अधिनियम क्या है? चलिए जानें।
नजूल भूमि समझें
बता दें कि देश में अंग्रेजों के शासन के दौरान उनके खिलाफ बोलने वाले राजा-राजवाड़े या प्रदर्शनकारियों की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था। इस भूमि पर अंग्रेजों का राज होता था। ऐसे भूमि को नजूल भूमि का नाम दिया गया है.हालांकि जैसे ही देश आजाद हुआ उसके बाद इस जमीन और इस तरह की संपत्तियों का अधिकार प्रदेश सरकार को दे दिया गया, जिसे सरकार लीज पर देना शुरू कर दी।
लीज पर देने की मियाद 15 वर्ष से 99 वर्ष
प्रदेश सरकार द्वारा नजूल भूमि को लीज पर देने की मियाद 15 वर्ष से 99 वर्ष के बीच की है. इस प्रकार की जमीन हर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इसी जमीन को लेकर ये बिल लाई है. इन संपत्तियों का उपयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए किया जाता है, जिसमें हॉस्पिटल, स्कूल पंचायत व अन्य शामिल है.
जमीन का हस्तांतरण
नियमों के अनुसार, नजूल भूमि का हस्तांतरण किया जा सकता है, लेकिन उस भूमि का मालिकाना हक नहीं बदल सकते है। उस पर प्रदेश सरकार का ही मालिकाना हक होता है. सिर्फ उसके इस्तेमाल में परिवर्तन हो सकता है।