लखनऊ। 10-12 साल की उम्र बच्चों के पढ़ने की होती है, लेकिन इसी उम्र में कई बच्चे मोह-माया को छोड़कर साधु- संन्यासी बन जाते हैं। ऐसे ही एक बच्चे ने सबकुछ त्याग कर संन्यासी बनने की सोचा। प्रयागराज के महाकुंभ में धुनी रमा रहे नागा संन्यासी गोपाल गिरि के. महज 3 साल की उम्र में साधु बन गए थे।
छोटी सी उम्र में ही बने संन्यासी
उसी समय गोपाल गिरी के ने वस्त्र त्याग दिए और अपने गुरु के सानिध्य में नागा संन्यासी बन गए थे। इस खेलने की उम्र में ही उन्हें खिलौनों के नाम से ही चिढ़ हो जाती थी। तन पर भभूत रमाए और हाथ में चापर लिए गोपाल गिरि के दिन भर भजन कीर्तन में करते रहते हैं। महाकुंभ में अपने गुरु के साथ पहुंचे गोपाल गिरी मूल रूप से हिमाचल प्रदेश में चंबा के निवासी हैं। उनके गुरु भाई बताते हैं कि 3 साल पहले इनके माता-पिता ने गुरुजी को बतौर गुरु दक्षिणा सौंप गए थे। उसी समय गुरुजी ने विधि विधान से इन्हें दीक्षा दी।
भगवान भोलेनाथ की सेवा में लीन
तभी से वह भगवान भोलेनाथ की सेवा में लीन हैं। गोपाल गिरि तो अपनी उम्र बताते हुए शर्माते हैं, लेकिन उनके गुरु भाई ने बताया कि इस समय केवल 8 साल के हैं। उन्होंने बताया कि गोपाल गिरी बीते पांच साल से आश्रम में रह रहे हैं। इस अवधि में वह जप तप साधना और अनुष्ठान करना सीख रहे हैं। इसके अतिरिक्त वह आश्रम में रहकर शस्त्र और शास्त्र का भी ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गोपाल गिरी को इधर उधर की बातें करना पसंद नहीं हैं। वह बहुत अनुशासन में रहते हैं।
भजन करना हमारा काम है
तन पर केवल अभिमंत्रित भभूत लगाकर दिन भर धूनी के सामने बैठे रहते हैं और भगवान शिव की अराधना करते हैं। बता दें कि महाकुंभ में सैकड़ों की तादात में नागा साधु पहुंचे शाही स्नान के लिए पहुंच रहे हैं। ये साधु संत दिन-रात संगम की रेती पर धुनी रमाते दिखाई देते हैं। खुद बाल नागा साधु गोपाल गिरी भी कहते हैं कि यहां दिन भर भंडारा चलता है। खाना पीना और भजन करना ही हमारा काम है।
महिलाओं के प्रवेश पर नाराज
बात बात पर गुस्सा जाहिर करने वाले गोपाल गिरी अखाड़े में महिलाओं के प्रवेश पर नाराज हो जाते हैं। वह नहीं चाहते हैं कि कोई भी उनकी साधना में बाधा डाले। हाथ में हमेशा चापर धारण करने वाले इस नागा साधु के मुताबिक हथियार धर्म की रक्षा के लिए होता है।