लखनऊ। संगम की रेती पर तैयार कुंभ नगरी में इस समय साधु-संतों का रहस्यमयी संसार दिखाई दे रहा है। कुंभ में पहुंचे हर बाबा की कोई न कोई खास कहानी है। कोई हाथ योगी वाले बाबा, कोई ई-रिक्शा वाले बाबा, कोई जानवर वाले बाबा तो कोई घोड़े वाले बाबा के नाम से मशहूर हैं। इस क्रम में एक चाबी वाले बाबा भी हैं, जो अपने एक हाथ में 20 किलो की लोहे की चाबी लेकर महाकुंभ पहुंचे हैं।
चाबी के पीछे का रहस्य
इस भारी-भरकम चाबी के पीछे की कहानी भी रहस्यमयी है। लोग इन्हें रहस्यमयी चाबी वाले बाबा के नाम से पहचानते हैं। बाबा के पास एक रथ है, जिसमें चाबी ही चाबी भरी होती हैं। बाबा की हर एक चाबी के पीछे एक कहानी होती है। 50 साल के चाबी वाले बाबा की खासियत ये है कि वह पूरे देश में पैदल अपने रथ को हाथों से खींचकर यात्रा करते रहते है। वे नए युग की कल्पना को लोगों तक पहुंच रहे हैं। चाबी वाले बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है। वो यूपी के रायबरेली के निवासी हैं।
बचपन से ही अध्यात्म से जुड़े
वे कहते हैं कि हरिश्चंद्र विश्वकर्मा का बचपन से ही अध्यात्म से जुड़ाव था। घरवालों के डर से वे कुछ बोल नहीं पाते थे, लेकिन जब वह 16 साल के हुए तो उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का फैसला लिया और घर से निकल गए। 16 साल की उम्र में ही उन्होंने ठान लिया था कि वह अधात्म को अपनाएंगे। हरिश्चंद्र विश्वकर्मा कबीरपंथी विचारधारा के हैं, इसलिए लोग उन्हें कबीरा बाबा पुकारते थे। अयोध्या से यात्रा कर चाबी वाले बाबा अब प्रयागराज कुंभ नगरी में पहुंचे हैं। कबीरा बाबा कई साल से अपने साथ भारी-भरकम चाबी लिए हुए हैं।
यात्रा के तौर पर बनाते हैं चाबी
उस चाबी के साथ ही उन्होंने पूरे देश की पदयात्रा की हैं। अपनी यात्रा और अध्यात्म के बारे में कबीरा बाबा कहते हैं कि लोगों के मन में बसे अहंकार का ताला वे अपनी इस बड़ी सी चाबी से खोलते हैं। वह लोगों के अहंकार को चूर-चूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाते हैं। अब बाबा के पास कई तरह की चाबियां मौजूद हैं। बाबा खुद ही अपने हाथों से चाबी बना देते हैं, जहां भी जाते हैं, यादगार के तौर पर चाबी का निर्माण कर लेते हैं।