Sunday, September 22, 2024

Brijesh Singh News: चंदौली हत्याकांड में माफिया बृजेश सिंह को बड़ी राहत, चार को आजीवन कारावास

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन व पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। बता दें कि चंदौली जिले में 37 साल पहले एक ही परिवार के सात लोगों की निर्मम हत्या करने के मामले में हाईकोर्ट से बृजेश सिंह को बरी किया गया था। वहीं इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। इस मामले में हाईकोर्ट ने माफिया बृजेश सिंह समेत 9 आरोपियों को आरोप मुक्त करते हुए सजा से राहत दी है। हालांकि, हाईकोर्ट ने बृजेश सिंह के साथ आरोपी बनाए गए चार अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी। दरअसल, इन चारों आरोपियों को भी बृजेश सिंह के साथ निचली अदालत ने बरी किया था.

चार आरोपियों को आजीवन कारावास

इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार आरोपी देवेंद्र सिंह, वकील सिंह, राकेश सिंह और पंचम सिंह को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वहीं अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि इन चारों आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले हैं, इसलिए इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। गौरतलब है कि एक ही परिवार के सात लोगों की सामूहिक हत्या के मामले में इन्हीं चारों आरोपियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए यह भी कहा है कि इन चारों आरोपियों को बरी करना सही फैसला नहीं था।

ट्रायल कोर्ट ने सुनाया था फैसला

बता दें कि चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस अजय भनोट की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया है। दरअसल, इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 9 नवंबर को अपना जजमेंट रिजर्व किया था। जिसके बाद पीड़ित परिवार की महिला हीरावती और यूपी सरकार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसमें ट्रायल कोर्ट ने साल 2018 के फैसले में माफिया बृजेश सिंह सहित सभी 13 आरोपियों को बरी किया था। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद फैसला इस फैसले को सुरक्षित किया।

जानें पूरा मामला

दरअसल, पीड़ित परिवार की महिला हीरावती की ओर उनके अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने कोर्ट में दलीलें पेश की थी। जिसमें 37 साल पहले हुए नरसंहार मामले को लेकर हाईकोर्ट में डे-टू-डे बेसिस पर फाइनल हियरिंग की जा रही थी। यह घटना 10 अप्रैल 1986 की है। इस घटना के अंतर्गत पीड़ित महिला हीरावती के पति, दो देवर और चार मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन वाराणसी जिले के बलुआ थाना क्षेत्र की घटना बताई गई। हालांकि, घटनास्थल बाद में चंदौली जिले में आ गया।

पीड़िता की बेटी शारदा चश्मदीद गवाह

इस मामले में चार नामजद व अन्य अज्ञात आरोपियों के खिलाफ वाराणसी जिले के बलुआ पुलिस स्टेशन में मुकदमा दर्ज किया गया था। जिसमें आईपीसी की धारा 148, 149, 302, 307, 120बी एवं आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। इस घटना की जांच पूरी होने के बाद बृजेश सिंह समेत कुल 14 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। बताया जाता है कि इस हत्याकांड में पीड़िता हीरावती की बेटी शारदा भी घायल हो गई थी। हालांकि, हाईकोर्ट में हीरावती की तरफ से दाखिल अपील में कहा गया, ट्रायल कोर्ट ने हीरावती की बेटी शारदा के बयान पर गौर नहीं किया। जबकि शारदा इस नरसंहार में गंभीर रूप से घायल हुई और वही इस घटना की चश्मदीद भी थी। उस समय ट्रायल कोर्ट ने शारदा के बयना को आधार नहीं माना था और कहा कि घटना के समय अंधेरा था।

ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को किया था बरी

इस घटना की जांच में पुलिस को लालटेन और टॉर्च सहित रोशनी के लिए इस्तेमाल हुई सामग्रियों प्राप्त हुई थी। यही नहीं खुद विवेचक ने यह बयान दिया था कि उसने आरोपी बृजेश सिंह को घटना के समय पकड़ा था, इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। यही नहीं पुलिस एक ही परिवार के सात लोगों की हत्या मामले में किसी को भी सजा नहीं दिला पाई थी। यहां तक कि विवेचक द्वारा दर्ज बयान भी ट्रायल कोर्ट में नहीं पढ़ा गया था। इसके साथ ही हीरावती के अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने हाई कोर्ट में पेश की गई दलीलों में बार-बार यह बात दोहराई बृजेश सिंह समेत अन्य सभी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत है। इसलिए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बदलते हुए सभी आरोपियों को अधिकतम सजा मिलनी चाहिए।

हाईकोर्ट के फैसले से पीड़ित पक्ष असंतुष्ट

हालांकि, हाईकोर्ट ने अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय की सभी दलीलों को सही न मानते हुए बृजेश सिंह समेत 9 आरोपियों को बरी कर दिया और सिर्फ चार आरोपियों को ही दोषी करार दिया है। इस मामले में बृजेश सिंह को भी अदालत में तलब किया गया था। जहां आरोपी बृजेश सिंह ने खुद को बेगुनाह बताया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद पीड़िता हीरावती के वकील उपेंद्र उपाध्याय का कहना है, वह लोग इस फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। इस फैसले का अध्ययन किया जाएगा और अगर पीड़ित परिवार चाहेगा तो हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दे सकते हैं।

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