Wednesday, September 25, 2024

चांद के सफर पर रवाना चंद्रयान-3, अरबों सालों से अंधेरे में डूबे दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा भारत

लखनऊ। अंतरिक्ष में भारत ने आज एक और छलांग लगा दिया है। दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग कर दी गई है। आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान 3 की लॉन्चिंग की गई। बता दें कि करीब 45 से 50 दिन की यात्रा करने के बाद चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग होगी। चंद्रयान-3 23 अगस्त के बाद कभी भी धरती से 3 लाख किलोमीटर दूर चंद्रमा की सतह पर कदम रखेगा। 4 साल में दूसरी बार भारत ने अपना मिशन मून लॉन्च किया है।

लग जायेगा इतना वक़्त

चंद्रयान-3 मिशन भारत के लिए बहुत खास है क्योंकि आज तक जितने भी देश है उन्होंने अपने यान चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव पर उतारे है। जबकि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जो अपने यान को दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा। इसरो चीफ एस सोमनाथ के मुताबिक चंद्रयान-3 लैंडर की लैंडिंग वेलोसिटी 3 मीटर/सेकंड है। इससे लैंडर दुर्घटनाग्रस्त नहीं हो पायेगा। चांद पर पहुंचने में चंद्रयान-3 को डेढ़ महीने से ज्यादा वक़्त लगेगा। इसका मकसद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। ऐसे में आइए जानते है कि दक्षिणी ध्रुव पर ऐसा क्या है जिसकी खोज चंद्रयान-3 करेगा।

चौथी महाशक्ति बनेगा भारत

मालूम हो कि चंद्रयान-2 की तरह चंद्रयान-3 का उद्देश्य भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। दरअसल दक्षिणी ध्रुव ऐसा जगह है जहां पर आज तक कोई भी बड़ा देश नहीं पहुंच सका। यदि चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर वहां पर सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है तो यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा। इससे पहले चांद की सतह पर लैंडर सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन ने उतारा है लेकिन ये सभी उत्तरी ध्रुव पर पहुंचे हैं। जबकि भारत का मकसद दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना है।

क्षितिज रेखा पर नजर आएगा सूर्य

दक्षिणी ध्रुव पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, रूस और चीन समेत कई महाशक्तियों की नजरें हैं। चीन ने कुछ समय पहले दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूर पर अपना लैंडर उतारा था। जबकि अमेरिका अगले साल दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी में है। बता दें कि चांद का दक्षिणी ध्रुव वैसा ही है जैसा पृथ्वी का है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की तरह चांद का दक्षिणी ध्रुव सबसे ठंडा है। अगर यहां आकर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा हो जाता है तो उसे सूर्य क्षितिज रेखा (आकाश और धरती को जोड़ती हुई नज़र आये) पर दिखेगा। उसे यहां से सूर्य और चमकता हुआ नजर आएगा। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि हमेशा छाया और कम तापमान में होने के कारण यहां पर पानी और खनिज हो सकता है।

अभी तक नहीं पहुंची सूर्य की रोशनी

नासा की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है। इसके अलावा दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। यहां पर बड़े-बड़े पहाड़ और गड्ढे है। सूरज की रोशनी भी कम मात्रा में पहुंचती है। 1998 के एक मून मिशन ने पता लगाया था कि दक्षिणी ध्रुव पर हइड्रोजन की भी मौजूदगी है। यहां पर कई ऐसे गड्ढे हैं जो अरबों सालों से अंधेरे में हैं वहां तक सूर्य की रोशनी कभी जा ही नहीं सकी।

Latest news
Related news