लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी का अब किसी भी दल के साथ गठबंधन ना करने का फैसला मुश्किल साबित हो रहा है। हरियाणा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के इस फैसले ने सियासी लोगों को भी हैरान कर दिया है। 2012 में सरकार से बाहर होना पड़ा पिछले12 सालों में बसपा […]
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी का अब किसी भी दल के साथ गठबंधन ना करने का फैसला मुश्किल साबित हो रहा है। हरियाणा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के इस फैसले ने सियासी लोगों को भी हैरान कर दिया है।
पिछले12 सालों में बसपा ने पांच चुनाव बिना गठबंधन के लड़े, जिनमें उसे बुरी तरह से हार मिली। इन हालात में बसपा सुप्रीमो के हाल ही के फैसले से होने वाले नुकसान और फायदे का आकलन शुरू हो गया है। साल 2012 में प्रदेश में बसपा को सरकार से बाहर होना पड़ा था। पार्टी ने विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ा, लेकिन उसके 80 विधायक ही बने। दो साल बाद बसपा ने फिर अकेले लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया, लेकिन उसका कोई प्रत्याशी सांसद नहीं बन पाया।
वहीं साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उसके 20 प्रत्याशी सांसद बने थे। इसके बाद साल 2017 का विधानसभा चुनाव बसपा ने फिर से अकेले लड़ने का फैसला लिया, लेकिन महज 19 प्रत्याशी ही विधानसभा पहुंच सके। साल 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन में लड़ने का उसका फैसला संजीवनी साबित हुआ और पार्टी के सांसदों की संख्या शून्य से बढ़कर 10 हो गई। यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया और बसपा ने सपा के वोट ट्रांसफर नहीं होने का आरोप लगाकर इसे खत्म कर दिया।
साल 2022 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए फिर से नुकसान भरा रहा, अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के कारण उसे महज 12.83 प्रतिशत मतदान ही मिला और महज एक प्रत्याशी विधानसभा तक पहुंच पाया।