लखनऊ: जलवायु संकट की वजह से मौसम का मूड अक्सर बदलते हुए देखा जा रहा है. इस कारण से अनिश्चितता बढ़ गई है. कहीं खूब बारिश हो रही है तो कहीं बाढ़ आ रही है. वहीं दूसरी तरफ कहीं सूखा पड़ा हुआ है. इस दौरान बादल फटने की कई घटनाएं भी सामने आई हैं. इसको […]
लखनऊ: जलवायु संकट की वजह से मौसम का मूड अक्सर बदलते हुए देखा जा रहा है. इस कारण से अनिश्चितता बढ़ गई है. कहीं खूब बारिश हो रही है तो कहीं बाढ़ आ रही है. वहीं दूसरी तरफ कहीं सूखा पड़ा हुआ है. इस दौरान बादल फटने की कई घटनाएं भी सामने आई हैं. इसको देखते हुए देश की मोदी सरकार ने बड़ा फैसला किया है. जिससे मौसम की समय पर सटीक सूचना मिल पाएं. इसके लिए AI और मशीन लर्निंग की सहायता से मौसम की सभी प्रकार की सूचना पाने में मदद मिलेगी. इस बीच मिशन मौसम जैसा बड़ा कदम मोदी सरकार ने उठाया है. इस प्रोजेक्ट के लिए 2 हजार करोड़ रुपये का बजट प्रस्ताव हुआ है.
इससे आर्टिफिशियल बादल तैयार करने के लिए लैब का निर्माण और रडार की नंबर में 150 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी करने के साथ-साथ नए उपग्रह, सुपर कंप्यूटर और बहुत कुछ नई चीजें जोड़ना शामिल होगा.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने इसको लेकर बताया है कि मौसम का पूर्वानुमान हमारे लिए चैलेंज बना हुआ है. इसका कारण है वायुमंडल की प्रक्रियाओं की मजबूत पकड़ और और मॉडल रेजोल्यूशन की बॉर्डर एरिया. इस कारण से उष्णकटिबंधीय मौसम का अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं होता है.
एनडब्ल्यूपी (Numerical Weather Prediction) मॉडल का रेजोल्यूशन के कारण से छोटे पैमाने की मौसम घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है. ये मॉडल अभी 12km तक फैला हुआ है.
इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण से वातावरण और ज्यादा अव्यवस्थित होता दिख रहा है. इस कारण से कहीं सूखा तो कहीं भीषण बारिश की स्थिति बनी हुई है. इस दौरान बादल फटना, बिजली गिरना, आंधी और तूफान देश में सबसे कम समझ आने वाली मौसमी घटनाओं में से हैं.
मंत्रालय के अनुसार, इस मौसमी घटनाओं से निजात पाने के लिए बादलों के अंदर और बाहर, सतह पर, ऊपरी वायुमंडल में, महासागरों के ऊपर और ध्रुवीय इलाकों में होने वाली मौसम से जुड़ी हर गतिविधि पर रिसर्च की जरूरत है.
इस मौसमी घटनाओं से उभरने के लिए हाई फ्रीक्वेंसी ऑब्जर्वेशन वाली टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी. इसके साथ छोटे लेवल पर मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए एनडब्ल्यूपी मॉडल के क्षैतिज रेजोल्यूशन को 12km से बढ़ाकर 6 किलोमीटर करना पड़ेगा.
वहीं केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव ने इसके लिए कहा है कि दो फेजों में यह पंच वर्षीय मिशन लागू होगा। फर्स्ट फेज मार्च 2026 तक जारी होगा. इसमें ऑब्जर्वेशन नेटवर्क को बढ़ावा देने पर फोकस किया जाएगा. इसमें करीब 70 डॉपलर रडार, अच्छे कंप्यूटर और 10 विंड प्रोफाइलर और 10 रेडियोमीटर लगेंगे. सेकंड फेज में ऑब्जर्वेशन कैपिसिटी को और बढ़ाया जाएगा. इसके लिए उपग्रहों और विमानों को आपस में जोड़ने पर फोकस किया जाएगा.
मिशन मौसम का मुख्य उद्देश्य लघु से मध्यम अवधि के मौसम पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार लाना है, जिसका फिलहाल लक्ष्य 5 से 10 फीसदी है. इसके साथ ही सभी महानगरों में एयर क्वालिटी के पूर्वानुमान में 10 फीसदी तक सुधार करना है.