लखनऊ। यूपी की सबसे हॉट सीटों में शुमार मैनपुरी लोकसभा सीट पर इस बार रोमांचक मुकाबला देखने को मिला है. इस सीट पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में हैं. वहीं योगी सरकार में मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर उन्हें टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं. तीसरे चरण में 7 मई को यहां वोटिंग हो चुकी है. कुल 58.59 फीसदी वोट पड़े हैं। बता दें कि साल 2019 में इस सीट पर 57.37 फीसदी वोट पड़े थे। उस समय सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव 5 लाख 24 हजार वोट पाकर 94 हजार 389 वोटों से विजयी हुए थे। उन्होंने बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को शिकस्त दी थी. शाक्य को महज 4 लाख 30 हजार वोट मिले थे.
2022 उपचुनाव में जीती थीं डिंपल यादव
हालांकि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद इस सीट पर साल 2022 में उपचुनाव कराया गया. इसमें समाजवादी पार्टी के टिकट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव 6 लाख 18 हजार वोट पाकर करीब 2 लाख 88 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत गई थीं. उन्होंने बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य को हराया था.इस चुनाव में रघुराज सिंह शाक्य को कुल 3 लाख 29 हजार वोट मिले थे. इस लोकसभा सीट पर साल 2014 में भी सपा की विजय हुई थी. उस समय 6 लाख 53 हजार वोट पाकर सपा के तेज प्रताप सिंह यादव विजयी हुए थे. उन्होंने 3 लाख 21 हजार वोटों के अंतर से बीजेपी के उम्मीदवार प्रेम सिंह शाक्य को शिकस्त दी थी. इस चुनाव में प्रेम सिंह शाक्य को कुल 3 लाख 32 हजार वोट मिले थे.
मैनपुरी 1996 से मुलायम सिंह यादव का गढ़
मैनपुरी लोकसभा सीट पर कभी कांग्रेस ने प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की थी. 5 बार कांग्रेस के उम्मीदवार यहां से जीते भी, लेकिन मुलायम सिंह यादव के प्रभाव के चलते यह सीट पूरी तरह से सपा का गढ़ बन गई है. 1996 में यहां से मुलायम सिंह यादव पहली बार चुनाव जीते थे. उसके बाद से यह सीट लगातार वह खुद या उनके परिवार के खाते में जाती रही.
मैनपुरी लोकसभा सीट का इतिहास
इस लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था. उस समय यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार बादशाह गुप्ता सांसद बने थे. 57 के चुनाव में यह सीट प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशी दास धनगर ने जीती. 62 में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता फिर जीते, लेकिन 67 और 71 के चुनाव में कांग्रेस ने महाराज सिंह को यहां से चुनाव लड़या और वह जीते भी.
77 और 80 के चुनाव में इस सीट पर जनता पार्टी के रघुनाथ सिंह वर्मा जीते. 84 में यह सीट एक बार फिर से कांग्रेस के पास चली गई, लेकिन 89 में जनता दल के टिकट पर और 91 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर उदयप्रताप सिंह यहां से जीत कर संसद पहुंचे.साल 1996 में मुलायम सिंह यादव, 98 और 99 में सपा के ही बलराम सिंह यादव और 2004 में फिर मुलायम सिंह यादव यहां से जीते. हालांकि उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया तो उपचुनाव कराना पड़ा. उस समय सपा के टिकट पर उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव यहां से सांसद चुने गए थे.2009 और 2014 में फिर से मुलायम सिंह यादव यहां से चुने गए और 2014 में उन्होंने यह सीट छोड़ दी तो उपचुनाव में तेज प्रताप सिंह यादव सांसद चुने गए. मुलायम सिंह यादव 2019 में भी यहां से जीते और उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में डिंपल यादव जीत कर सांसद बनीं. मजे की बात यह कि इस सीट पर आज तक बीजेपी और बीएसपी का खाता तक नहीं खुला है.
मुख्य मुकाबले से बाहर हैं अन्य प्रत्याशी
वैसे तो मैनपुरी लोकसभा सीट से सपा और भाजपा के अलावा बसपा प्रत्याशी शिवप्रसाद यादव समेत कुल 6 प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा में ही है। बसपा भी इस मुख्य मुकाबले से बाहर है।
हेमा की सबकी नजर
मथुरा। इस सीट पर जैसी उम्मीद थी, चुनाव का रंग उससे अलग ही नजर आया। भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी के सामने कमजोर माने जा रहे उनके प्रतिद्वंद्वियों ने मतदान के दिन ऐसा रंग दिखाया कि कई चेहरों पर हवाइयां उड़ती नजर आईं। इस सीट पर मतदान प्रतिशत भी कम रहने से कई अटकलें लगाई जाती रहीं। कम मतदान किसके पक्ष और किसके विरोध में जाएगा, यह मंगलवार को साफ हो जाएगा। इस सीट पर हेमा मालिनी की हैट-ट्रिक पर अब सबकी नजर टिकी हैं। पार्टी नेतृत्व ने 75 की उम्र के नियम को तोड़ कर हेमा पर दांव खेला है। हेमा मालिनी ने इस सीट पर पहला चुनाव वर्ष 2014 में लड़ा और रालोद के जयंत चौधरी को करीब 3.30 लाख मतों के अंतर से हराया। 2019 में रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह सपा और बसपा के समर्थन से मैदान में थे। इस चुनाव में भी हेमा मालिनी को 60.79 प्रतिशत वोट मिले। जीत का अंतर 2.93 लाख रहा। इस पर बार उनके सामने बसपा ने जाट प्रत्याशी सुरेश सिंह और कांग्रेस ने मुकेश धनगर को मैदान में उतारा। इन्हें हेमामालिनी के सामने कमजोर प्रत्याशी माना जा रहा था। मगर, जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा, समीकरण बदलते देखे गए। कांग्रेस ने मुस्लिम मतों में ठीकठाक सेंधमारी की। सजातीय प्रत्याशी होने के कारण धनगरों का मत भी मिला। ऐन चुनाव से पहले रालोद नेता कुंवर नरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक धड़े ने हेमा का विरोध किया। ये धड़ा मुकेश धनगर के साथ देखा गया। इस बार बीते दो चुनावों के मुकाबले मतदान बेहद कम 49.49 प्रतिशत ही रहा। डैंपियर नगर निवासी संतोष अग्रवाल कहते हैं, भाजपा के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में मतदाता कम निकले।