लखनऊ। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को (UNESCO) की तरफ से भारत को बड़ी खुशखबरी मिली है। दरअसल, यूनेस्को की तरफ से गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस और पंचतंत्र की कथाओं को मान्यता दी गई है। इसमें यूनेस्को ने रामचरितमानस (Ram Charit Manas) की सचित्र पांडुलिपियां और पंचतंत्र दंतकथाओं की 15वीं शताब्दी की पांडुलिपि को अपनी ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर’ में शामिल किया है।
यूनेस्कों ने लगाई मुहर
बता दें कि यूनेस्को ने 2024 के इस संस्करण में एशिया पैसिफिक की 20 धरोहरों को शामिल किया है। जिसमें रामचरित मानस, पंचतंत्र के साथ ही सहृदयालोक-लोकन की पांडुलिपि भी दर्ज की गई है। ऐसे में ये हर भारतीय के लिए बेहद गौरव का विषय है, क्योंकि अब यूनेस्को ने भी भारत की समृद्ध साहित्यिक विरासत और सांस्कृतिक विरासत पर अपनी मुहर लगा दी है। जानकारी दे दें कि यूनेस्को की तरफ से ये फैसला उस समय लिया गया जिस समय अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बना।
MOWCAP की बैठक में हुआ फैसला
जानकारी के अनुसार, यूनेस्को (UNESCO) की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया पैसिफिक कमेटी इन विश्व धरोहरों में अन्य श्रेणियों के अलावा, जीनोलॉजी, साहित्य और विज्ञान में एशिया-प्रशांत की उपलब्धियों को मान्यता देती है। ऐसे में रामचरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को इसमें शामिल करने का फैसला किया गया। बता दें कि 7 और 8 मई को मंगोलिया की राजधानी, उलानबटार में आयोजित मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक की 10वीं बैठक में ये फैसला लिया गया।
इस दौरान, एमओडब्ल्यूसीएपी (MOWCAP) की 10वीं आम बैठक की मेजबानी इस बार मंगोलियाई सरकार के संस्कृति मंत्रालय, यूनेस्को के लिए मंगोलियाई राष्ट्रीय आयोग और यूनेस्को के बैंकॉक क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा की गई। जिसमें 40 पर्यवेक्षकों के अतिरिक्त नामांकित व्यक्तियों के साथ सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
भारत के ये ग्रंथ शामिल
‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर’ में शामिल किए गए ग्रंथ, रामचरित मानस की रचना तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में की थी। ये अवधी लिखी गई है। वहीं जबकि रामायण को ऋषि वाल्मिकी ने संस्कृत भाषा में लिखा था। वहीं पंचतंत्र को दुनिया की दंतकथाओं के सबसे पुराने संग्रहों में से एक माना जाता है। इसे विष्णु शर्मा ने संस्कृत भाषा में लिखा, जो महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के दरबारी विद्वान थे। माना जाता है कि इसकी रचना 300 ईसा पूर्व के आसपास हुई होगी। इसके अलावा ‘सहृदयालोक-लोकन’ की रचना आचार्य आनंदवर्धन ने संस्कृत भाषा में की थी। जो कि 10वीं के शताब्दी के आखिरी सालों और 11वीं शताब्दी के पहले वर्षों में कश्मीर में रहते थे।